Sunday, March 29, 2009

आकाशनीम,२

"मीनाक्षीजी,आपकी रचनाओंमे इतना दर्द क्यों है?आप इन्सानी जज़्बात की गहराईयों तक इतनी सहजता से कैसे पोहोंच जाती हैं ?"....
मेरे पाठक चहेते मुझसे अक्सर सवाल किया करते और मैं मुस्कुराकर टाल जाती। एक असीम दर्द की अनुभूति जो एक एक कलाकृति बनकर उभरती रही,उसका थाह भला कब कौन ले सकता था! अपनी काव्य रचनाओं के रुप मे बह निकले जज़्बात, मुझे लोगोंकी निगाहों मे प्रतिभावान बाना जाते। कई पुरस्कृत संग्रहों ने मुझे शोहरत की ओर पोहोचा दिया था।
क्रमशः।

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