ऐसे नामवर सर्जन का बेटा चित्रकार कैसे बना, येभी एक अचरज था...... लेकिन सुना था, बाप ने अपने बेटे को हमेशा प्रोत्साहन ही दिया। खैर! नरेंद्रजी अपनी माँ को लेकर एक दिन हमारे घर आ गए और दीदी के रिश्ते की बात पक्की हो गयी।
जल्द ही शादीका दिनभी आ गया। ख़ुशी और दुःख का एक ही साथ ऐसा एहसास मुझे कभी नही हुआ था। दुल्हन बनी नीला दीदी के चहरे से नज़ारे हटाये नही हटती थीं,और कुछ ही देर मे बिदा हो रही मेरी ये अभिन्न , अंतरंग सहेली अपनी ससुराल चली जायेगी इस का दुःख मेरी आँखें नम किये जा रहा था। बिछुड़ते समय हम दोनो गले लगकर ख़ूब रो लीं.....
kramashaha
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