Sunday, March 29, 2009

आकाशनीम.५

नीला दीदी के बिना खाली घर मुझे खानेको उठता। चंद घंटे महाविद्यालय मे निकल जाते। गनीमत यह थी कि दीदी की ससुराल रामनगर मेही थी। मेरा कालेज का आख़री साल था। दिन तेज़ीसे बीत रहे थे। घर पे मेरे ब्याहकीभी बात चल रही थी। इधर दीदीके गर्भवती होनेकी खबर सुन के दोनो परिवार आनेवाले मेहमान के बारेमे सपने बुन ने लगे। मैं अक्सर दीदी के ससुराल चली जाया करती। हम दोनो घंटो बातें करते,कई बार माजी भी आकर बैठ जाती। हमलोग मिलकर बच्चों के नामों की सूची बनाते........ कभी लड़के की तो कभी लडकी की.......


यथा समय दीदी को अस्पताल ले जाया गया। जब दीदी घरसे निकली तो क्या पता था कि वे वापस लौटेंगीही नही। प्रसव के दरमियाँ अत्याधिक रक्तस्राव के कारण दीदी की मृत्यु हो गयी। होनी देखिए,जिस डाक्टर के हाथ मे दीदी का केस था वो डाक्टर अचानक बेहद बीमार पड़ गया। एक अन अनुभवी डाक्टर को केस ठीक से संभालना नही आया। पीछे अपनी नन्ही , - प्यारी-सी धरोहर,एक बिटिया को छोड़ दीदी हमसे सदा के लिए बिछुड़ गयी....

हम सब पर क्या गुज़री इसका बयाँ मैं नही कर सकती......वो पूरण मासी का दिन था, इसलिये सब उस बिटिया को पूर्णिमा बुलाने लगे .......उसका नामकरण संस्कार कभी हुआ ही नही।
मैंने इस नन्ही -सी कली को अपने कलेजे से चिपका लिया। नरेंद्रजी अक्सर उस से हमारे घर पे आकर मिल जाया करते। जब पूर्णिमा : माह की हुई तो नरेन्द्र की माँ ने मेरी माँ के आगे एक प्रस्ताव रखा।

कह नही सकती कि,इस प्रस्ताव के बाद या जब दीदी की मृत्यु हुई उसीके बाद दूसरा अध्याय शुरू हुआ। तबतक तो जीवन एक सीधी,सरल लकीर-सा था। जीवन मे उतार चढाव भी होते है ये सिर्फ कथा कहानियो मे सुना था और हमेशा यही लगता था कि ऎसी बाते किसी और के ही जीवन मे होती होंगी.... अपने जीवन मे नही.....
क्रमशः.

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