Sunday, March 29, 2009

आकाशनीम( अन्तिम)

मीना,
सालोंबाद तुम्हारे नामके साथ, क्या, सँबोधन लिखूँ, नही जनता। लेकिन इतने सालोंबाद हिदोस्तान और फिर रामनगर खींच लानेवाली तुम्ही हो। मैं शाम जब रामनगर पोहोचा तो सीधे तुम्हारे घर आया। वहाँ आकर माँ जी के बारेमे ,नरेंद्र के बारेमे पता चला। मुझे बेहद दुःख हुआ। पता नही, इतने साल तुमने किस तरह अकेले काटे होंगे!!तुम भी घरपर नही हो सो मैंने होटल मे ठहरने का इरादा कर लिया चिट्ठी तुम्हारे बूढ़े नौकर रामूको देकर जा रहा हूँ। होटल का कार्ड साथमे है। तुमसे मिलनेकी बेहद इच्छा,इंतजार है। आशा है तुम चिट्ठी पढ़तेही मुझसे सम्पर्क ज़रूर करोगी।
तुम्हारा
स्टीव"
मीनाक्षी दौड़ते हुए हवेली के पिछवाडे गयी जहाँ रामूकाका का घर था और उन्हें ज़ोर जोरसे आवाज़ लगाके जगाया,"रामू काका!!ये चिट्ठी आयी थी और तुमने मुझे तुरंत बताया क्यों नही?"

रामूकाका हडबडा के बोले "बहूजी , मैंने आपके लिखने वाले कमरे मे रखी थी। फिर दो बार मैं आपसे कहने कमरेमे झाँक गया। आप लिखने मे एकदम खो गईँ थीं। मेरी आवाज़ भी नही सुनी, इसलिये उल्टे पैर लॉट गया। सोंचा,सवेरेही बता दूँगा....."
"अच्छा,अच्छा,अब ड्राइवर को तुरंत इस होटल के पतेपे भेजो। वहाँ स्टीव साहब रुके हैं, उन्हें लाना है,"कहते हुए उसने रामूकाका को होटल का कार्ड थमाया और दौड़ पडी आकाशनीम की तरफ....... तना पकड़ के उसे झकझोरा.... .... सफ़ेद,सुगन्धित फूलोंकी वर्षा हो गयी...... महक छा गयी.......

स्टीव गया था। उसका स्वागत करना था। अब उन्हें कोयीभी शक्ती दूर नही करेगी। नियती के घटना क्रम मे वो नियत क्षण गया था .....वो हारी नही थी.... उसने उस सुबह की, उस सुहाने सूर्योदयकी प्रतीक्षा की थी, जो जल्द ही होनेवाला था। एक निश्चित उष:काल.... ,सिर्फ भीक मे मिली सूरज की बिछडी किरण नही,शामकी लालिमाकी लकीर नही.......... ।

समाप्त
comment post naheen ho rahaa h ..likha h dil se
बेहद खूबसूरत कहानी..दिल को तो छूती ही है वहीं शिल्प और कथ्य के स्तर पर भी अद्भुत .. साहित्यिक और सिनेमाई दोनों निकष पर खरी ...ऐसी हकीकत बयानी कहाँ से सीखी अपने..जो दिल में उतर जाती है ..जिन्दगी बनके साथ हो जाती है

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Dushyant - JAIPUR - 98290-83476
my blog -
dr-dushyant.blogspot.com

4 comments:

shama said...

इरशाद अली said...

आपकी बेहतरीने कहानीयों में से एक
March 29, 2009 8:55 AM
Vidhu said...

सब ठीक नही हुआ था...sundar abhivyakti

shama said...

amarjeet kaunke said...

shama ji, aakaashneem maine sari pad li...is kahani me apne samajik privesh me ek aurat k balidan ko jitni khubsurti se abhivyakt kia hai vo lajwab hai...bhartya smaj me ek aurt kaise apne sanskaron me tan man se bandhi hai aur vo man hi man kitna dard kitni vedna appne bhitar sahti hai aur kisi ko is ki bhanak b padne nahi deti....ye is kahani me bahut kalatmik roop se pesh kia gia hai...kahani ka naam aakaashneem kahani k sukhad ant ko bahut parteekatmak dhang se pesh karta hi...itni pyari kahani likhne k liye aap mubark ki hakdaar hain....amarjeetkaunke@gmail.com
June 4, 2009 7:29 PM

shama said...
This comment has been removed by the author.
shama said...

Amaarjeet jee kaa comment ,"chitthaa jagat"pe tha, isliye maine use yahan copy,paste kar diya hai..isee kaaran, unke commentke oopar mera naam nazar aa rahaa hai ! Kshama prarthee hun!
shama