Tuesday, May 12, 2009

एक खोया हुआ दिन ! अन्तिम

आँसू भरी आँखोंसे उसने मैले कपडे साबुन मे भिगोए,झाड़ू लगाई,बरतन मांझे। फिर भिगाये हुए कपडे धो डाले। नहानेके बादभी बड़ी रुलाई आ रही थी,लेकिन समय कहॉ था? दालें सब्जी आदी लानेके बाद पी. टी .ए की मीटिंग मे जाना था,उसीमेसे समय निकालकर दो निवाले खाने थे।

सहेलीकी सास से भी मिलना था,या फिर उनसे कलही मिला जाय?आज आसार नज़र नही आ रहे थे।

वो पी.टी.ए.की मीटिंग के लिए स्कूल पोहोंची। वहाँ उसको ख़याल आया कि बिटियाको अच्छा खासा बुखार चढ़ा हुआ था। घर लॉट ते समय वो बिटिया को डाक्टर के पास ले गयी। डाक्टर ने ख़ून तपासने के लिए कहा। रिपोर्ट दुसरे दिन मिलेगी। लेकिन डाक्टर को मलेरिया की शंका थी। हे भगवान्! बच्चों का यूनिट टेस्ट तो सरपर था। लेकिन कोई चारा नही था। वो घर पोहोंची। बच्चों के कपडे बदले। बच्ची को बिस्तरपर लिटाया। दवाई दीं। उसके सरमे दर्द था,सो थोडी देर वो पास बैठकर दबाने लगी। कुछ देर के बाद बच्ची की आंख लग गयी। उसके पास वो स्वयम भी लेटी। लेकिन तभी कॉल बेल बजी। कौन होगा इस वक़्त सोचते हुए उसने दरवाज़ा खोला तो माजी खडी थी। वे अपनी बहेन के पास हफ्ताभर रेहनेके इरादेसे गयी थी, लेकिन पैर मे मोंच आनेके कारण लॉट आयी। वहाँ देखभाल करनेवाला कोई नही था। वो उन्हें उनके कमरेमे ले गयी। पैरपे लेप लगाया। तबतक दोपहर के साढेचार बज रहे थे। उसने दो कप चाय बनाई। माजी का पैर काफी सूज रहा था,इसलिये उसने पती को फ़ोन पे कहा के घर लॉट ते समय डाक्टर को ले आयें।

फिर वो अपनी बिटिया को देखने गयी। उसका माथा बोहोत गरम लगा इसलिये ठंडे पानीकी पट्टियां रखना शुरू की। उसके पैरोंके तलवे भी ठंडे पानीसे पोंछे। रातमे क्या भोजन बनाया जाय येभी वो मनही मन सोंच रही थी। बिटिया को खाली पेट दवाई नही देनी थी पर वो क्या खायेगी इस बातकी उसे चिंता थी। अंत मे उसने खिचडी बनाई। घियाकी सब्जी बनाई। इन दोनो चीजोंको माजी हाथ भी लगायेंगी ये उसे मालूम था। उनके लिए उसने पालक पूरियोंकी तैयारी की और तभी उसके ध्यान मे आया, कि वो दही जमाना भूल गयी थी। वे बिना दहीके पूरियां खाने से रही! और दहीभी घरका जमाया हो। सोंचते,सोंचते उसने बेटेका स्कूल बैग खोला। डायरी चेक की। तय ना होनेका रिमार्क थाही। होम वर्क ज़्यादा नही था। उसने बेटे को टी.वी. के सामने से उठाया। वो छुटका होमवर्क के लिए तंग नही करता था।

दही के लिए उसने अपनी एक सहेली को फ़ोन लगाया। दही कैसे जमाना वो सहेली इसीसे सीखी थी। सहेली दही देके चली गयी। पती डाक्टर को लेकर घर आये। उन्होने माजीके पैरको एलास्टोप्लास्त लगाया। ये सब हो जानेपर उसने बिटिया को थोडा सा खाना खिलाया। बेटे को खाना परोस कर वो सामने बैठी रही। उसने थोडा नाटक करते हुए खाना खाया। पती अपनी माँ के पास बैठे थे। उन दोनो का खाना उसने माजी के कमरेमेही परोसा,फिर बोली,"आप आप माजी के कमरे मे ही सो जयिये। रात मे उन्हें बाथरूम जाने मे अन्यथा मुश्किल होगी"।

उसने स्वयम बच्चों के कमरे मे सोने का सोंचा।

सब निपट्नेके बाद उसने थोड़े बरतन मांझे। जब सब सो गए तो वो अपनी सहेलीसे बडे दिनोसे एक किताब लाई थी,उसे पढने लैंप जलाकर आराम से कुर्सी पर बैठ गयी। तभी बिजली गुल हो गयी। ज़िन्दगीका एक और दिन अपनी हाजरी लगाकर खो गया।

5 टिप्पणियाँ:

Shastri JC Philip said...

You need to work on a climax of the story. Only a proper climax will attract people to your writings.

The expression part is superb! Keep it up.

Shastri JC Philip said...

Emails sent to you are bouncing. Kindly "enable" email in your blogger profile.

Here is one email I sent you. Delete it after you read it.

I was trying to read your latest story. I notice
that there are many spelling mistakes. You
need to work on it with a consice English-Hindi
dictionary

Shastri JC Philip said...

Here is a second email I sent you. Delete it after reading:

Thanks for your comment on Tarangen. My main
website is www.Sarathi.info

I will surely read the story you posted.

Sarathi is a very popular website and I have done
the following for your site:

सारथी (www.Sarathi.info) के प्रति आप ने जो स्नेह दिखाया
है उस के लिये आभार ! हमारा एक लक्ष्य हिन्दी एवं हिन्दी
चिट्ठाकरों को प्रोत्साहित करना है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के
लिये हम कई नई योजनायें बना रहे है.

सारथी पर देशीविदेशी पाठकों का जो अनवरत प्रवाह चलता
रहता है उन को अन्य चिट्ठो से परिचित करवाने के लिये
हम ने इस हफ्ते एक और मेनु आयटम जोडा है:

.सक्रिय-हिन्दी-चिट्ठे

इसे आप सारथी के शीर्ष पर दिये गये मेनु में देख सकते है.
आज हम ने आप का एक चिट्ठा यहां जोड दिया है.
कृपया इसे जांच लें कि यह सही है क्या.

यदि आप के और भी कोई चिट्ठे हैं जिनको आप यहां जोडना
चाहते हैं तो निम्न जानकारी भेज दे:

चिट्ठानाम
जालपता
पांच या छ: शब्दों का परिचय

जैसे ही यह जानकारी हम को मिल जायगी, वैसे ही इसे
सारथी पर जोड देंगे. आप को कुछ और नहीं करना होगा.

-- शास्त्री जे सी फिलिप


हिन्दीजगत की उन्नति के लिये यह जरूरी है कि हम
हिन्दीभाषी लेखक एक दूसरे के प्रतियोगी बनने के
बदले एक दूसरे को प्रोत्साहित करने वाले पूरक बनें

deepanjali said...

आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा.
ऎसेही लिखेते रहिये.
क्यों न आप अपना ब्लोग ब्लोगअड्डा में शामिल कर के अपने विचार ऒंर लोगों तक पहुंचाते.
जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.

Shastri JC Philip said...

This is not a comment but only a mail. There is no other way to communicate with you as I do not know your email.

This is to say thanks for the note you sent this week via Tarangen, my blog.

Good to know it is your personal story. Will help me to read as a biography

Shastri

4 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

और कहानी का भी एक ब्‍लॉग
आपके लेखन से है बहुत आस
रचना की इस शमा को लौ बनाती रहिए
अपने जीवन से ऊर्जा पहुंचाती ही रहिए
जो आप लिखती हैं अच्‍छा लगता है
लिखा हुआ आपका बिल्‍कुल सच्‍चा लगता है।

अविनाश वाचस्पति said...

आप ऑनलाईन नजर आ रही हैं
मतलब आपने टिप्‍पणी स्‍वीकृत की
इससे आभास हो रहा है आपके
ऑनलाईन होने का।

आपके सभी ब्‍लॉग ब्‍लॉगवाणी पर
अवश्‍य ही जुड़ने चाहिए जिससे
पाठकों को इन रचनाओं से
न रहना पड़े मशरूम
अरे सॉरी मशरूम नहीं महरूम।

Pradeep Kumar said...

bahut marmik kahaani hai . theek ant se pahle sarpat daudti kahaani aise lagti hai jaise interval ke baad hindi film sarpat daudti hai magar ant main aapne ise bakhoobi sambhaalaa hai aur achchhe( bhale hi ye kisi ko atpata lage kyonki zindagi ki haqeeqat hameshaa talkh hi hoti hai) mukaam tak panhuchaayaa hai. ye baat dil ko chhoo gaie - जब सब सो गए तो वो अपनी सहेलीसे बडे दिनोसे एक किताब लाई थी,उसे पढने लैंप जलाकर आराम से कुर्सी पर बैठ गयी। तभी बिजली गुल हो गयी। ज़िन्दगीका एक और दिन अपनी हाजरी लगाकर खो गया।
kabhi kabhi sajeev to kya nirjeev cheezein bhi aise hi daaman chhudaa leti hain jaise museebat main saayaa bhi aadmi se door bhagne lagtaa hai. theek wahee aabhaas bijli gul hona de rahaa hai.
saadhuvaad !!

Pradeep Kumar said...

ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिए शुक्रिया. आगे कुछ लिखूंगा तो अपने ब्लॉग के साथ आपके कविता ब्लॉग पर भी पोस्ट करने की कोशिश करूंगा . आप मराठी में भी लिखती हैं जानकर अच्छा लगा. मेरा भी एक शगल है कि बहुत सी ज़बान सीखूं लेकिन वक़्त नहीं निकाल पाता . खैर सीखने के लिए कुछ वक़्त निकालने की कोशिश करूंगा.
अब कुछ आपकी कहानी के बारे में -
कहानी के और कैसे अंत हो सकते हैं ? ये जानने के लिए आपको पाठकों का उत्साह नहीं मिला इसका मुझे अफ़सोस है . लेकिन कोशिश करने में क्या हर्ज़ है आप ब्लॉग पर एक प्रयास और कीजिये .आपकी कहानी लोग पढ़ते हैं तभी तो इतने कमेंट्स आते हैं इसलिए उम्मीद है कि यहाँ आपको निराशा नहीं होगी . जहां तक एक खोया हुआ दिन की बात है - ये सच है कि कहानी का अंत सकारात्मक होना चाहिए मगर मेरा निजी तौर पर मानना है कि उसे सच के निकट होना चाहिए . खैर इस बारे में सबके अलग अलग विचार हो सकते हैं और होने भी चाहिए.
आपने फिल्म का नाम नहीं बताया ! मौका मिला तो मैं भी देखना चाहूँगा ! वैसे चलो एक और दिन भी अच्छा अंत है .
अब कुछ उस लिंक के बारे में जो आपने बताया था . सरसरी तौर पर देखा है कुछ पढ़कर टिप्पणी करूंगा अभी बस इतना ही कि - काफी आकर्षक है . ..........