बी.कॉम.की परीक्षा हो गयी। कुछ दिन मौज मस्तीमे गए और फिर संगीताकी एम्.बी.ए.की पढी,कॉलेज,और एक विशिष्ट दिनचर्या शुरू हो गयी। सुबह्से शामतक,कभी,कभी,रातमे दस बजेतक उसके क्लासेस चलते रहते। उसके बनिस्बत सागरके पास अपनी ड्रामा की प्राक्टिस के अलावा काफी समय रहता। वो संगीता को मिलनेके लिए बुलाता रहता,लेकिन संगीताके पास एक रविवारको छोड़कर ,और वोभी कभी कभार,समय रेह्ताही नही। इसतरह की दिनचर्या देख सागर चिढ जाता,"येभी कोई ज़िंदगी है?"वो संगीतासे पूछता।
"देखो सागर,ज़िन्दगीमे अगर कुछ पाना हो तो कुछ खोनाभी पड़ता है। ये मैं नही कह रही,हमारे बुज़ुर्गोने कह रखा है,"संगीता उसे समझानेकी भरसक कोशिश करती।
"तुम्हे सभी क्लासेस अटेंड करना ज़रूरी है?कभी मेरे ड्रामा की प्राक्टिस देखनेका तुम्हारा मन नही करता?ऐसीभी क्या व्यस्तता की जो ज़िन्दगीका सारा मज़ाही छीन ले?" सागर बेहेस करता।
"तुम्हारे ड्रामा की प्राक्टिस देखने का मेरा बोहोत मन करता है, लेकिन इसलिये मैं अपने क्लासेस मिस नही कर सकती,"संगीता को हल्की-सी सख्ती जतानी पड़ती।
एक बार सागर को एक फिल्म्के स्क्रीन टेस्ट की ऑफर आयी। उस समय संगीता उसके साथ जा पायी। टेस्ट सफल रहा और सागर को एक फिल्म मे काम करनेका मौका मिला। अबतक संगीताका एक साल पूरा हो चुका था लेकिन गर्मियोंकी छुट्टी मे उसे कोर्स के एक भाग के तौरपर
किसी कम्पनी मे काम करना ज़रूरी था। उसने मार्केटिंग लिया था। पूनामेही उसे दो महीनेका काम मिल गया।
एक दिन शाम को सागर अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट लेकर संगीता के घर पोहोंचा। उसके रोल के बारे मे बता कर उसने संगीता की राय मांगी,तो संगीता बोली,"सच कहूं सागर?चिढ मत जान। कहानी बिलकुल बेकार है। कुछ्भी दम नही, वही घिसी pitee । अब तुम अपना रोल किस तरह निभाते हो इसपे शायद तुम्हारा भविष्य कुछ निर्भर हो।"
"मुझे लगाही था कि तुम इसी तरह कुछ कहोगी। मेरी यह पहली शुरुआत है, कम से कम मेरा चेहरा तो जनता के सामने आयेगा, लोग मेरा अभिनय देखेंगे। अन्यथा कब तक इंतज़ार करूंगा मैं?"सागर खीझ कर बोला।
"चिढ़ते क्यों हो? तुम्ही ने मेरी राय पूछी। निर्णय तो तुम्ही को लेना है!"संगीता बोली।
उसका दूसरा साल शुरू हुआ और सागर की शूटिंग भी। सागर अलग अलग लोकेशन्स पर घूम ने लगा। फिल्म रिलीज़ होनेतक संगीता का दूसरा सालभी ख़त्म होने आ रहा था और उसे कैम्पस इंटरव्यू मेही बोहोत अच्छी ओफर्स आयी थी। उन्ही मेसे उसने एक प्रतिष्ठित बैंक की नौकरी स्वीकार कर ली क्योंकि काम पूनामेही करना था। बढिया तनख्वाह, कार तथा फ़्लैट, ये सब उसी पाकेज का हिस्सा थे।
सागरकी फिल्म तो पटकी खा गयी लेकिन उसका अभिनय तथा व्यक्तित्व कुछ निर्माता निरदेशकोंको भा गया।
सागर का घर पूनामेही था। वो अपनी माँ-बापकी इकलौती ऑलाद था। उसने और फिल्मे साईन करनेके बाद पेइंग गेस्ट्की हैसियत से मुम्बैमे जगह लेली। सागर संगीता का अब ब्याह हो जाना चाहिए ऐसा दोनोके घरोंसे आग्रह शुरू हो गया और जल्द होभी गया। संगीताके सास ससुर दोनोही बडे ममतामयी और समझदार थे। उन दोनोको अधिक से अधिक समय इकठ्ठा बितानेका मौक़ा मिले ऎसी उनकी भरसक कोशिश रहती।
सागर की व्यस्तता बढती जा रही थी। अब उसने मुमबैमे अपना एक छोटासा फ़्लैट भी ले लिया,जिसे संगीताने बड़ी कलात्मक्तासे सजाया। समय तथा छुट्टी रेहनेपर वो कभीकभार सागर की फिल्मी दावतोंमे भी जाती। हमेशा पारम्परिक कलात्मक वेशभूषामे। उसके चेहरेमे उसकी बातचीत के तरीके मे कुछ ऐसा आकर्षण था,जो लोगोंको उसकी ओर खींच लाता। अर्धनग्न फिल्मी अभिनेत्रियों को छोड़ लोग उसके इर्द गिर्द मंडराते।
इसी तरह तेज़ीसे दिन बीत ते गए। देखतेही दो साल हो गए और संगीता के पैर भारी हो गए। मायका और ससुराल दोनो ओर सब उस खुशीके दिनका इंतज़ार करने लगे जब किसी नन्हे मुन्ने की किलकारियाँ घरमे गूंजेंगी।
"तुम्हे बेटा चाहिए या बेटी?"एक बार सागर ने संगीता को पूछा।
"मुझे कुछ भी चलेगा। बस भगवान् हमे स्वस्थ बच्चा दे,"संगीता बोली,और फिर प्रसूती का दिन भी आ गया। सागर अपनी शूटिंग कुछ दिन मुल्तवी रख के संगीता के पास पूना मेही रूक गया। संगीता को प्रसूती कक्ष मे जाया गया। काफी देर के इंतज़ार के बाद डाक्टर ने बताया के सिज़ेरियन करना पड़ेगा। होभी गया। जब उसे कमरेमे लाए तब तक वो बेहोश थी।
प्रस्तुतकर्ता shama पर 8:32 AM
1 टिप्पणियाँ:
Udan Tashtari said...
बढ़िया लिखा जा रहा है, बधाई. स्वागत है. लिखते रहें, शुभकामनायें.
October 16,
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1 comment:
सही जा रही है कहानी ।
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