जब वो पुणे आया तो उसने माँ से पूछा,"माँ,मैंने तुम्हे बड़ी मुद्दत से पैसे नही दिए, और तुमनेभी नही मांगे। ये सब खर्च किस तरह चला रही हो तुम?"उसके बाहर रहते उसके पिताभी पनद्रह दिनोके लिए अस्पतालमे भर्ती थे। माँ के लिए रखी हुई दिन भरकी कामवाली बाई भी आती थी। सारे बिल चुकाए जा रहे थे। सागर को कुछ समझ मे नही आ रहा था। माँ खामोश रही।
"कुछ बोलोना माँ! तुमने अपने जेवर तो नही बेचे?" सागर ने फिर पूछा।
"सागर,तुम्हे याद है,मैंने कहा था, संगीताने घर छोड़ा है,लेकिन हमे नही छोड़ा?सब घर-गृहस्थी उसीकी वजह से चलती रही,"माँ ने जवाब दिया।
"क्यों? क्यों लिए उससे पैसे??"सागर चीखने लगा।
"तो क्या तुम्हारे पिताको मरनेके लिए छोड़ देती?और मेरे घुट्नोमे इतना दर्द रहता है,मुझे उठने बैठ्नेमे इतनी तकलीफ होती है,मैं कर सकती घर का सारा कामकाज?तेरे पास समय था हमारी पूछताछ करनेका?"माँ ने भी उंची आवाज़ मे जवाब दिया तो सागर चुप कर गया।
उसके मनमे पश्चात्ताप की भावना जाग उठी। अनजानेही उसके मनने स्वीकारा के संगीता उससे बढ़कर अभिनेत्री बन सकती थी। वो सुन्दर भी थी,बेहद फोटोजेनिक भी थी। उसके अभिनय का लोहा सभी ने माना था। सिर्फ उसके कारण उसने नौकरी की सुरक्षितता थामी थी और उसने क्या किया था संगीता के लिए,जिसके साथ उसने जीवनभर साथ निभानेका वादा किया था, सात फेरे लिए थे? एक बेहद कठिन मोड़ पर,जहाँ संगीताको उसकी सख्त ज़रूरत रही होगी, उसका साथ छोड़ दिया था।
इतवारकी शाम थी। संगीता अपने घर मे बैठी टी.वी.देख रही थी, तभी दरवाज़ेपर घंटी बजी। उसने दरवाज़ा खोला। सामने सागर खडा था।
"आयिये!" ,बिना कोई अचरज दिखाए उसने कहा। पहले वो उसको"तुम"करके संबोधित करती थी। सागर बैठा। उसने फ़्लैट मे इधर उधर नज़र दौड़ाई । वही कलात्मकता जो संगीता के स्वभावका एक अंग थी, यहाँ भी दिखाई दी।
"संगीता,मुझे ये "आप"करके क्यों संबोधित कर रही हो? क्या मैं इतना पराया हो गया हूँ?"
"ये सवाल आप अपने आपसे कीजियेगा। मुझे सिर्फ बतायिये,चाय या कोफी ?"
उसे सिर्फ कोफी ही पसंद थी और मूड आता तो दोनो एक दूजेसे कहते ,"चलो कोफी हो जाय"।
"मैं लेकर निकला हूँ,मुझे कुछ नही चाहिए",सागर ने कहा। सच तो ये था के वो कोफी के लिए कभीभी मन नही करता था इस बातसे संगीता अच्छी तरह अवगत थी।
"ठीक है,मैं अपने लिए बनाने चली थी ,सोंचा आपसेभी पूछ लूँ,"कहकर वो ड्राइंग तथा डायनिंग की बगल मे जो ओपन किचन था ,वहाँ गयी और अपने लिए कोफी बनाके ले आयी। वो उसे निहारता रहा। प्रसव के बाद उसका किंचित-सा वज़न बढ़ गया था,लेकिन अब वो किसी कॉलेज कन्या की तरह दिख रही थी।
"कैसा चल रहा है तुम्हारा काम धंदा?"सागरने पूछा।
असलमे उसकी तटस्थ तासे वो चकरा गया था। वो सोंचता था की संगीता इस तरह के सवाल करेगी के,"इधर कैसे आना हुआ?"
फिर वो उससे क्षमा मांग के ,पिछली बाँतें भूलनेके लिए कहेगा ,इसतरह का मन बना के वो आया था।
"बिलकुल मज़ेमे चल रहा है सबकुछ,"उसका जीवन कैसा चल रहा है,ये तो उसने पूछा ही नही। वैसे उसे सब पताही था। उसके पास क्यों आया येभी संगीता ने उससे पूछा नही।
"संगीता,मैं किसलिए आया हूँ ये तुम ने मुझसे पूछा ही नही?"पूछ ते हुए उसकी ज़बान सूख रही थी।
"ये बात मैं क्यों पूछू ?आप आये है ,आपही बताएँगे!"संगीताने कहा।
"संगीता,मुझे ये आप,आप कहना बंद करो,"अचानक सागर ने ऊंचे स्वरमे कहा।
"देखिए,चिल्लायिये मत। आप मेरे घर अपनी मर्ज़ीसे आये है,और मुझसेही ऊंचे स्वरमे बात कर रहे है?कमाल है!"संगीताने अबभी संयत स्वरमे कहा।
"सुनो संगीता.......,मैं तुम्हे फिरसे घर ले जाने के लिए आया था,क्या तुम आओगी,ये पूछने आया हूँ। जो हुआ उसके लिए मुझे बेहद अफ़सोस है। मैं पश्चात्ताप की अग्नीसे झुलस रहा हूँ। मुझे तुमसे बोहोत सारी बातें करनी हैं,एक नए सिरेसे ज़िंदगी शुरू करनी है.........संगीता...,"सागर इल्तिजा करने लगा ।
संगीताने उसे बीछ मेही रोक दिया,"देखिए,मैं कभीभी वापस लौटूंगी , ये ख़याल आप अपने दिमाग से पूरी तरह निकाल दीजिए। आप मेरे निरपराध बच्चे का क़त्ल कर ने निकले थे। ऐसे आदमी के साथ ज़िंदगी गुज़ारनेकी मूर्खता मैं फिर कभी नही करूंगी।" वो अभीभी सादे स्वरमे बतिया रही थी,उसके लह्जेमे बर्फीली ठंडक थी।
Posted by Shama at 11:10 PM 0 comments
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