Sunday, October 21, 2007
दयाकी दृष्टी सदाही रखना.! ४
राजू दो सालका हुआ न था कि आशाके पैर फिर भारी हुए। उसे फिर लड़काही हुआ। वो थोडी-सी मायूस हुई। लडकी होती तो शायद आगे चलके सहेली बन गयी होती...... इस लड़केका नाम इन लोगोंने संजीव रखा। राजू-संजूकी जोड़ी!
उसने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलमे डाला। बच्चे आज्ञाकारी थे। माँ-बाप तथा दादीका हमेशा आदर करते। समय पर पढाई खेल कभी कभार हठ्भी, जो कभी पूरा किया जाता कभी नही। दिन पखेरू बनके सरकते रहे......
इस बीच उसने बी.एड.भी कर लिया। पतीने बैंकिंग की औरभी परीक्षाएँ दी तथा तरक़्क़ी पाई। राजू दसवी तथा बारहवी कक्षा तक बहुत बोहोत बढिया नमबरोंसे पास होता गया और उसे सहजही मेडिकल कॉलेज मे प्रवेश मिल गया।
जब संजू बारवी मे था तब आशा की माँ गुज़र गयी। सिर्फ सर्दी-खाँसी तथा तेज़ बुखार का निमित्त हुआ और क्या हो रहा है ये ध्यान मे आनेसे पहलेही उसके प्राण उड़ गए। न्युमोनिया का निदान तो बादमे हुआ।
बोहोत दिनोतक माँ की यादों मे उसकी पलके नम हो जाती। आशा स्कूलसे आती तो माँ चाय तैयार रखती। खाना तैयार रखती। सासकी इस चुस्ती पर उसका पतीभी खुश रहता। धीरे,धीरे खाली घरका ताला खोल के अन्दर जानेकी उसे आदत हो गयी।
संजूको भी बारहवी मे बोहोत अछे गुण मिले राजू के बाद वोभी मेडिकल कोलेजमे दाखिल हो गया। देखतेही देखते राजू एम्.बी.बी.एस.हो गया।
internship पूरी करके सर्जन भी बन गया। उसकी प्रगल्भ बुद्धीमत्ता की शोहरत शहरभर मे फ़ैल गयी और एक मशहूर प्राइवेट अस्पताल मे उसे नौकरी भी मिल गयी। इस दरमियाँ पतीके पीछे लगके उसने छतपे दो सुन्दरसे कमरे भी बनवा लिए थे। राजू संजूके ब्याह्के बाद तो ये आवश्यक ही होगा।
अपूर्ण
उसने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलमे डाला। बच्चे आज्ञाकारी थे। माँ-बाप तथा दादीका हमेशा आदर करते। समय पर पढाई खेल कभी कभार हठ्भी, जो कभी पूरा किया जाता कभी नही। दिन पखेरू बनके सरकते रहे......
इस बीच उसने बी.एड.भी कर लिया। पतीने बैंकिंग की औरभी परीक्षाएँ दी तथा तरक़्क़ी पाई। राजू दसवी तथा बारहवी कक्षा तक बहुत बोहोत बढिया नमबरोंसे पास होता गया और उसे सहजही मेडिकल कॉलेज मे प्रवेश मिल गया।
जब संजू बारवी मे था तब आशा की माँ गुज़र गयी। सिर्फ सर्दी-खाँसी तथा तेज़ बुखार का निमित्त हुआ और क्या हो रहा है ये ध्यान मे आनेसे पहलेही उसके प्राण उड़ गए। न्युमोनिया का निदान तो बादमे हुआ।
बोहोत दिनोतक माँ की यादों मे उसकी पलके नम हो जाती। आशा स्कूलसे आती तो माँ चाय तैयार रखती। खाना तैयार रखती। सासकी इस चुस्ती पर उसका पतीभी खुश रहता। धीरे,धीरे खाली घरका ताला खोल के अन्दर जानेकी उसे आदत हो गयी।
संजूको भी बारहवी मे बोहोत अछे गुण मिले राजू के बाद वोभी मेडिकल कोलेजमे दाखिल हो गया। देखतेही देखते राजू एम्.बी.बी.एस.हो गया।
internship पूरी करके सर्जन भी बन गया। उसकी प्रगल्भ बुद्धीमत्ता की शोहरत शहरभर मे फ़ैल गयी और एक मशहूर प्राइवेट अस्पताल मे उसे नौकरी भी मिल गयी। इस दरमियाँ पतीके पीछे लगके उसने छतपे दो सुन्दरसे कमरे भी बनवा लिए थे। राजू संजूके ब्याह्के बाद तो ये आवश्यक ही होगा।
अपूर्ण
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