Sunday, March 29, 2009

आकाशनीम.९

नरेन्द्र ने संक्षेप मे जो स्टीव को बताया उसे सुन कर मैं दंग रह गयी..... उस समय नरेन्द्र को मेरे कमरे मे होने का भी शायद आभास नही रहा था...... वे मानो स्वयम से बतिया रहे थे।
नरेन्द्र अब भी किस क़दर अपनी प्रथम पत्नी से जुडे हुए थे......! मेरे साथ उन्होने दीदी का विषय शायद ही कभी छेड़ा हो। हम दोनो ही अपनी अपनी तौर से उनसे बेहद जुडे हुए थे तथा उनका जान अपनी निजी क्षती मन कर कभी बाँट नही पाए थे.....
मेरे ब्याह से पहले मेरे शंकित मन को लेकर घरवालों ने समझाया था कि बाद मे सब ठीक हो जायेगा। अक्सर होही जाता है। फिक्र मत करो। दोष मेरा था या नियती का नही जानती, सब ठीक नही हुआ था। नरेन्द्र और मैं,एक छत के नीचे रहकर भी बिलकुल अकेले थे। हमसफ़र होते हुए भी हमारा जीवन दो समांतर रेखाओं की भाँती चल रहा था....
क्रमशः

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