Sunday, March 29, 2009

आकाशनीम.७

एक दिन नरेन्द्रजी हमारे घर आये और उन्होने मुझसे अकेले मे बात करने का आग्रह किया। हमे बैठक मे अकेला छोड़ कर माँ-बाबूजी अन्दर चले गए, तब नरेंद्रजीने कहा,"देखो मीनाक्षी, किसीभी दबाव मे आकर कोयीभी निर्णय मत लेना। तुम्हारे आगे तुम्हारा सारा जीवन पडा है। ये ना हो कि तुम्हे बाद मे पछताना पडे। मैं अपनी ओरसे तुम्हे आश्वासन दे सकता हू कि तुम्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करुंगा। उसमे मुझे कितनी सफलता मिलेगी कह नही सकता "

"मैंने कहा था,नरेन्द्रजी मैं पूर्णिमासे बेहद जुड़ चुकी हूँ। आपकी और मेरे रिश्तेकी आगे परिणति क्या होगी ये बात मेरे ज़हेनमे इतनी नही आती जितनी पूर्णिमाकी चिंता सताती है। पूर्णिमाकी वजह्से मैंने इस शादीके लिए स्वीकृती देनेका निर्णय लिया है। मैं आपको क्या दे पाऊँगी कह नही सकती क्योंकि आजतक मैंने आपको सिर्फ जीजाके रुपमे ही देखा है।"

नरेन्द्रजी कुछ देर चुप रहे,फिर बोले,"ठीक है,मीनाक्षी,तो मैं इसे तुम्हारी अनुमती समझ लूँ?"

मैंने "हाँ"मे गर्दन हिला दी।

"तो फिर किसी सुविधाजनक तिथीपर हम सादगी से शादी कर लेंगे,"नरेंद्रने मुझसे तथा मेरे घरवालोंसे कहा।

तिथी निश्चित हुई। घर मे कोयीभी शादी वाली रौनक नही थी। बाबूजी ने कुछ छुट्टी लेली। किसीके दिल मे ज़रासा भी उत्साह नही था। माँ को मैं चुपके,चुपके अपने आँचल से आँसू पोंछते देख लेती। हम दोनोही एक दुसरे से छुपके आँसू बहाते। कैसी घनी उदासीका आलम था, मानो सारी कायनात रो रही हो।

यथासमय, विवाह के पश्चात्, मैं पूर्णिमा के साथ नरेन्द्रजी के घर गयी और बाबूजी अपने तबाद्लेकी जगह चले गए।
जीवनधारा किसीके लिए रुकती नही .......नीला दीदीकी वही चिरपरिचित हवेली..... लगता था मानो अभी किसी कमरेमे से बाहर आयेंगी। हर दरोदीवार पर उनका अस्तित्व महसूस होता रहता,हर तरफ वो अंकित थीं.... दीवारोंके लब होते तो वे उन्हीके गीत गातीं.....

नरेंद्रका व्यवहार मेरे प्रती बेहद मृदु था। हम दोनोही एकदूसरे को आहत ना करने की भरसक कोशिश करते, लेकिन हमारे बीच ना जाने कैसी एक अदृश्य दीवार ,कोई अदृश्य खाई बनी रहती जिसे हम लाँघ नही पाते......
जो व्यक्ती मेरी दिवंगत दीदीका सर्वस्व था,उसके और मेरे बीच का सेतु केवल पूर्णिमाही थी। हम दोनोही चाहें भरसक इस सत्य से अनजान बननेकी कोशिश करते, उसे नकार नही सकते। हमारे अतीव अंतरंग क्षणों मेभी एक ऎसी अदृश्य परछाई जाती, जो मेरी पकड़ मे नही आती। नरेंद्रमे कुछ्भी खोट नही थी। लेकिन भावनात्मक तौर पर मैं उनसे जुड़ नही पा रही थी ,जैसे की एक पत्नी को जुडना चाहिए ......

क्रमशः.

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