Saturday, May 30, 2009

किसी राह्पर १

सागर और संगीता कॉलेज की कैंटीन मे बैठ के गपशप कर रहे थे। साथ गरमा गरम काफ़ी भी थी। इस जोडी से अब पूरा कैम्पस परिचित हो चुका था । शुरुमे जब उनके ग्रूपके अलावा दोनो मेलजोल बढ़ाते तो बाकी संगी साथी उन्हें ख़ूब छेड़ते ,लेकिन अब सबने जान लिया था कि ये अलग होनेवाली जोडी नही है।
इन दोनोका परिचय कॉलेज के ड्रामा के कारण हुआ था। दोनोको अभिनयका शौक़ था और जानकारिभी। दोनोही अपनी भूमिका जीं जान लगाके करते और देखने वालोंको लगता मानो वे बिलकुल मंझे हुए कलाकार हो। दोनोही इस समय बी.कॉम.के आखरी सालमे थे। पढाई मे संगीता सागरसे बढकर थी। बी.कॉम.के बाद वो एम्.बी.ए .करना चाहती थी। हालहीमे उसका सी.ई.टी.का रिजल्ट निकला था तथा वो उसमे दूसरे स्थान पे आयी थी। ये अपने आपमें एक बड़ी उपलब्धी थी। उसे पूनाके किसीभी प्रातिथ यश एम्.बी.ए. के कॉलेज मे प्रवेश मिल सकता था। दोनो इसी बारेमे बतिया रहे थे। सागरने अभिनयका क्षेत्र चुन लिया था तथा स्वयमको उसीमे पूर्णतया समर्पित करना चाहता था। वो संगीताकोभी यही करनेके लिए प्रेरित कर रहा था।
"देखो सागर,नाटक सिनेमा आदी क्षेत्रोमे किस्मतका काफी हिस्सा होता है,सिर्फ मेहनत या लगन काम नही आती। लोटरीकी तरह है ये सब। लग गयी तो लग गयी,वरना इंतज़ार ही इंतज़ार। हम दोनोमेसे एक को तो सुनिश्चित तनख्वाह की नौकरी करनीही पडेगी। अभिनय के क्षेत्रमे कितनेही चहरे उभरते,और प्रतिभाशाली होकरभी सिर्फ हाज़री लगाके ग़ायब हो जातें है।"संगीता सागर को बडीही संजीदगीसे समझा रही थी। वैसेभी उसकी विचारधारा बडीही परिपक्व थी। उसके पिता,जब वो बारहवी मे थी ,तभी चल बसें थे। उसकी और दो छोटी बहने थी। उसके चाचाने अपने भाईके परिवारको हर तरह्से मदद की थी और संगीता इस कारण उनकी सदैव रुणी थी।
"संगीता,तुम जो कह रही हो,वो मैं समझता हूँ, लेकिन ज़िंदगी हमे अपनी मर्ज़ीसे जीनी चाहिऐ। इसके लिए अगर थोडा रिस्क ले लिया जाये तो क्या हर्ज है? थोडी आशावादी बनो। प्रसार माध्यमोने हमे अच्छी प्रसिद्धी दी है। आंतर महाविद्यालयीन स्पर्धाएं हमने जीती है। अच्छी,अच्छी पत्रिकायोंमे ,अखबारोंमे हमारी मुलाकातें छपी हैं। मुझे अपना भविष्य उज्वल नज़र आ रहा है,"सागर उसे मनानेकी भरसक कोशिश कर रहा था।
संगीता उसके हाथ थामके,मुस्करा पडी और बोली,"नही सागर,एम्.बी.ए.करनेका ये अवसर मैं कतई नही गवाना चाहती । तुम करो नाटक सिनेमा। तुम्हारे यशमे मैं अपना यश मनके संतोष कर लूंगी। कहते है ना कामयाब पुरुष के पीछेकी स्त्री!"
सागर समझ गया कि इस मामलेमे संगीता अडिग रहेगी। कैंटीन से उठके दोनो अपने अपने घर चले.....
क्रमश:
प्रस्तुतकर्ता shama पर 9:16 PM
लेबल: retarded, अखबार, कामयाब., किसी राह्पर, भिविश्य
2 टिप्पणियाँ:

Sanjeeva Tiwari said...

इस तथ्‍य को नकारा नहीं जा सकता कि हर सफल पुरूष के पीछे एक स्‍त्री होती है बेहतर चिंतन को विवश करती रचना, बधाई ।

'आरंभ' छत्‍तीसगढ का स्‍पंदन
October 6, 2007 12:12 AM
उन्मुक्त said...

अगली कड़ी का इंतजार है।
October 6, 2007 1:15 AM
Posted by Shama at 11:15 AM

3 comments:

अजय कुमार झा said...

jab tak pooraa na padh loon kahanee tab tak kuchh nahin kahungaa...haan utsuktaa bani rahegee...agle ank kee..

Arvind Gaurav said...

intzaar rahega agle post ka

Asha Joglekar said...

बहुत परिपक्स है संगीता आगे जानने की उत्सुकता है । आपने मेरी कविता पर जो लंबी टिप्पणी की बडा अच्छा लगा । आप का लिखा अनुभव जन्य होता है इसी लिये मौलिक । आप जरूर भेजें url.